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ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में हुई अंधाधुंध गोलीबारी की घटना अत्यंत निंदनीय और पीड़ादायक है।

ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में हुई अंधाधुंध गोलीबारी की घटना अत्यंत निंदनीय और पीड़ादायक है। इस हमले में अनेक निर्दोष लोगों की जान गई और कई घायल हुए। प्रारंभिक रिपोर्टों में जिन व्यक्तियों की संलिप्तता की बात कही जा रही है, वह जाँच का विषय है और अंतिम निष्कर्ष कानून व जाँच एजेंसियाँ ही तय करेंगी।

यह सत्य है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में होने वाली हिंसक घटनाएँ हमें यह सोचने पर विवश करती हैं कि कट्टर और उग्र विचारधाराएँ आखिर जन्म कैसे लेती हैं। किसी भी धर्म, समुदाय या संस्कृति से जुड़ा व्यक्ति जब निर्दोषों के विरुद्ध हिंसा करता है, तो वह मानवता के विरुद्ध अपराध करता है—चाहे उसका धर्म कोई भी हो।

यह भी विचारणीय प्रश्न है कि कुछ स्थानों पर धार्मिक या वैचारिक शिक्षाओं की ऐसी व्याख्याएँ क्यों सामने आती हैं, जो लोगों को असहिष्णुता और हिंसा की ओर धकेलती हैं। समस्या किसी समुदाय से अधिक कट्टर सोच और विकृत शिक्षा-पद्धति की है, जो व्यक्ति की विवेकशीलता को समाप्त कर देती है।

राज्य का दायित्व है कि ऐसे अपराधियों को कानून के अनुसार कठोर दंड दे। लेकिन समाज के रूप में हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम सतर्क रहें, संवाद को बढ़ावा दें और हर प्रकार की हिंसक व घृणास्पद विचारधाराओं का शांतिपूर्ण, वैचारिक और सामाजिक स्तर पर विरोध करें।

सरकार अपना कार्य करेगी, किंतु समाज को भी आत्ममंथन करना होगा कि ऐसी सोच पनपने ही न पाए। यदि किसी भी प्रकार की अमानवीय विचारधारा दुनिया में जीवित रहती है, तो यह सामूहिक असफलता मानी जाएगी।

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